मध्यप्रदेश में ओबीसी वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण देने में कोई न्यायिक अड़चन नहीं : सुप्रीम कोर्ट

भोपाल
 मध्य प्रदेश में लंबे समय से ओबीसी को आरक्षण 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी किए जाने का मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा था। इस पर अब बड़ी खबर सामने आई है। एमपी ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने का फैसला लागू रहेगा सुप्रीम कोर्ट ने एमपी हाई कोर्ट के फैसले को सही माना है। साथ ही यूथ फॉर इक्वेलिटी संगठन की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में लगाई स्पेशल लीव पिटीशन खारिज कर दी है।

दरअसल, साल 2019 में कमलनाथ सरकार ने ओबीसी वर्ग का आरक्षण 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी कर दिया था। विधानसभा में इसका विधेयक पास हो गया। 2 सितंबर 2021 के दिन सामान्य प्रशासन विभाग ने ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने का सर्कुलर जारी कर दिया। हालांकि इसके साथ ही यूथ फॉर इक्वेलिटी संगठन ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई।

हाईकोर्ट ने निरस्त की चुनौती वाली याचिका

यूथ फॉर इक्वेलिटी संगठन की तरफ से लगाई याचिका में सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने 28 जनवरी 2025 को याचिका खारिज कर दी। इसके बाद इस संगठन ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल की। इस पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया। उन्होंने याचिका खारिज करते हुए कहा कि 27 फीसदी ओबीसी को आरक्षण लागू होने में मध्य प्रदेश में कोई न्यायिक अड़चन नहीं है।

27 प्रतिशत आरक्षण देने का रास्ता साफ
इस मामले में हाईकोर्ट भी यूथ फॉर इक्वलिटी की याचिका खारिज कर चुका है। हाईकोर्ट ने 28 जनवरी को दो याचिकाएं खारिज की थीं। यूथ फॉर इक्वलिटी की याचिका में ओबीसी के 27 प्रतिशत आरक्षण के सर्कुलर को चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट में लगी एसएलपी खारिज कराने के लिए ओबीसी एडवोकेट वेलफेयर एसोसिएशन ने अपना पक्ष दमदारी से रखा। यूथ फॉर इक्वलिटी की याचिका खारिज होने के साथ ही एमपी में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का रास्ता साफ हो गया है।
आरक्षण पर कोई कानूनी रोक नहीं
‘यूथ फॉर इक्वलिटी’ की याचिका पर महत्वपूर्ण सुनवाई में मध्यप्रदेश सरकार की ओर से पक्ष प्रस्तुत करने कोई प्रतिनिधि मौजूद नहीं हुआ। इससे सरकार द्वारा मामले को जानबूझकर लटकाने की कोशिश करने की आशंका उत्पन्न हुई। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने न केवल याचिका को खारिज कर दिया बल्कि ये भी साफ कर दिया है कि ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण पर कोई कानूनी रोक नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एमएम सुंदरेश और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल ने मामले की सुनवाई की। एडवोकेट वरुण ठाकुर एवं एडवोकेट रामकरण ने ओबीसी महासभा की ओर से पक्ष रखा। ओबीसी महासभा ने सुप्रीम कोर्ट में यह केस लड़ने के लिए समुदाय ये एक-एक रुपए एकत्रित किए थे।
ओबीसी को 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत आरक्षण
एमपी में कांग्रेस की तत्कालीन कमलनाथ सरकार द्वारा ओबीसी को 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत आरक्षण देने का निर्णय लिया गया था। 2019 में लिए गए इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका लगाई गई थी जिसे खारिज कर दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट में यह एसएलपी यूथ फॉर इक्वेलिटी संगठन द्वारा दायर की गई थी।

सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में एमपी हाईकोर्ट के आदेश को उचित बताते हुए स्पष्ट किया कि ओबीसी वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण में कोई न्यायिक अड़चन नहीं हैं। गौरतलब है कि फरवरी माह में ही एमपी हाईकोर्ट जबलपुर के मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैथ और न्यायाधीश विवेक जैन की युगलपीठ ने ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण के कानून का पालन करने का आदेश दिया था। पीठ ने यह भी कहा था कि 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण पर किसी प्रकार की रोक नहीं है।

वायरल हुआ पूर्व सीएम कमलनाथ का बयान

मध्यप्रदेश में ओबीसी वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण देने में कोई न्यायिक अड़चन नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के फैसले को सही मानते हुए यह स्पष्ट किया। कोर्ट ने कहा कि 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण पर कोई रोक नहीं हैं। उन्होंने आगे लिखा कि अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल में 2019 में मैंने प्रदेश के ओबीसी वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का कानून बनाया था। उसके बाद से बनी भाजपा की सरकार असंवैधानिक रूप से षडयंत्र रचकर लगातार ओबीसी को आरक्षण से वंचित कर रही है।

पहले माननीय मध्य प्रदेश हाईकोर्ट और अब सुप्रीम कोर्ट ने भी स्पष्ट कर दिया है कि OBC को 27 प्रतिशत आरक्षण देने वाले क़ानून पर कोई रोक नहीं है। बीजेपी को अब मध्य प्रदेश के ओबीसी समाज से माफी मांगनी चाहिए और तत्काल प्रभाव से प्रदेश में ओबीसी को 27% आरक्षण देना चाहिए।

India Edge News Desk

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